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मातृभूमि की स्तुति और राष्ट्रीय चेतना का प्रतीक बना स्मरणोत्सव
रायपुर।
‘वंदे मातरम्’ राष्ट्रगीत की 150वीं वर्षगांठ के अवसर पर आज देशभर में विविध कार्यक्रमों का आयोजन हुआ। यह ऐतिहासिक दिन छत्तीसगढ़ में भी बड़े उत्साह और गर्व के साथ मनाया गया। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मंत्रालय महानदी भवन में वरिष्ठ अधिकारियों एवं कर्मचारियों के साथ सामूहिक रूप से ‘वंदे मातरम्’ का गायन किया। सभी ने उद्घोष के साथ आज़ादी की राष्ट्रीय चेतना का पुण्य स्मरण किया और अमर बलिदानियों को नमन किया।
प्रधानमंत्री बोले—‘वंदे मातरम्’ मां भारती की आराधना की प्रेरक अभिव्यक्ति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संदेश में कहा कि ‘वंदे मातरम्’ मां भारती की साधना और आराधना की प्रेरक अभिव्यक्ति है। उन्होंने कहा कि इसके सामूहिक गान का एक प्रवाह, एक लय और एक तारतम्य हृदय को स्पंदित कर देता है।
प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ भारत की आज़ादी का उद्घोष था, जिसने गुलामी की बेड़ियों को तोड़ने और स्वाधीन भारत के स्वप्न को साकार करने की प्रेरणा दी। यह गीत केवल प्रतिरोध का स्वर नहीं, बल्कि आत्मबल जगाने वाला मंत्र बना। उन्होंने कहा कि ‘वंदे मातरम्’ में भारत की हजारों वर्षों पुरानी सभ्यता, संस्कृति और समृद्धि की कहानी समाहित है। आज भारत अपनी परंपरा, आध्यात्मिकता और आधुनिकता के समन्वय से आगे बढ़ रहा है।
मुख्यमंत्री बोले—‘वंदे मातरम्’ मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम का प्रतीक
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने राष्ट्रगीत की 150वीं वर्षगांठ पर प्रदेशवासियों को शुभकामनाएँ देते हुए कहा कि यह गीत मातृभूमि के प्रति अगाध प्रेम, कृतज्ञता और राष्ट्रधर्म की भावना का शाश्वत प्रतीक है।
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पूरे देश ने एक स्वर में ‘वंदे मातरम्’ का सामूहिक गायन कर मातृभूमि की वंदना की है।
मुख्यमंत्री ने बताया कि 7 नवम्बर 1875 को बंकिमचंद्र चट्टोपाध्याय ने इस कालजयी रचना की सृष्टि की थी, जिसे बाद में उनके उपन्यास ‘आनंद मठ’ में शामिल किया गया। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान यह गीत देशभक्ति की सबसे प्रबल प्रेरणा बना और अनेक क्रांतिकारियों ने “वंदे मातरम्” कहते हुए प्राण न्योछावर किए।
बंगाल विभाजन के समय ‘वंदे मातरम्’ ने जगाई स्वदेशी चेतना
मुख्यमंत्री साय ने कहा कि 1905 में बंगाल विभाजन के समय ‘वंदे मातरम्’ ने स्वदेशी आंदोलन को नई ऊर्जा दी। उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम तक यह गीत सांस्कृतिक एकता और राष्ट्रभक्ति का मंत्र बन गया।
उन्होंने कहा कि यह गीत सुनते ही हृदय में ऊर्जा, गर्व और देशभक्ति का संचार होता है। “यूरोप में भूमि को फादरलैंड कहा जाता है, लेकिन भारत में हम अपनी भूमि को मातृभूमि कहते हैं” — यही भाव ‘वंदे मातरम्’ का मूल है।
प्रधानमंत्री ने किया स्मारक सिक्का और डाक टिकट का विमोचन
कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ को समर्पित स्मारक सिक्का और डाक टिकट का विमोचन किया। साथ ही, ‘वंदे भारत पोर्टल’ (vandematram150.in) का शुभारंभ किया गया।
इस पोर्टल के माध्यम से देशवासी अपनी आवाज़ में ‘वंदे मातरम्’ रिकॉर्ड कर इस ऐतिहासिक यात्रा से जुड़ सकते हैं। यह पहल भारत की गौरवशाली विरासत से लोगों को जोड़ने का अवसर देगी।
छायाचित्र प्रदर्शनी में झलकी राष्ट्रीय चेतना की ऐतिहासिक यात्रा
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मंत्रालय महानदी भवन में आयोजित ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर छायाचित्र प्रदर्शनी का शुभारंभ किया। उन्होंने इसके माध्यम से ‘वंदे मातरम्’ के सृजन से लेकर राष्ट्रीय चेतना के प्रतीक बनने तक की ऐतिहासिक यात्रा का अवलोकन किया।
मुख्यमंत्री ने कहा कि यह प्रदर्शनी भारत के गौरवशाली इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम की अनकही कहानियों को उजागर करती है और नई पीढ़ी को ‘वंदे मातरम्’ की प्रेरक भूमिका से परिचित कराती है।
इस अवसर पर सांसद चिंतामणि महाराज, मुख्य सचिव विकास शील, मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव सुबोध कुमार सिंह, संस्कृति सचिव रोहित यादव, सचिव राहुल भगत, मुकेश बंसल, पी. दयानंद, डॉ. बसवराजू एस. सहित अन्य वरिष्ठ अधिकारी एवं कर्मचारी उपस्थित थे।









