- ड्रग्स केस में 47 आरोपी गायब: नाइजीरिया और नेपाल के नागरिकों का पैटर्न
- कोर्ट ने पूछा- वेरिफिकेशन का क्या सिस्टम है?
नई दिल्ली.
सुप्रीम कोर्ट ने विदेशी नागरिकों द्वारा संदिग्ध दस्तावेजों के सहारे जमानत लेने और फिर देश से गायब हो जाने के बढ़ते मामलों पर गहरी चिंता जताई है। कोर्ट ने इस गंभीर मुद्दे पर केंद्र सरकार और भारतीय विशिष्ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) को नोटिस जारी कर पूछा है कि जमानत दस्तावेजों की असलियत को वेरिफाई (सत्यापित) करने के लिए वर्तमान में क्या सिस्टम मौजूद है।
जस्टिस संजय करोल और जस्टिस विपुल एम पंचोली की बेंच ने सुनवाई के दौरान कहा कि फर्जी पहचान के जरिए जमानत लेने की घटनाएं बढ़ रही हैं। जजों ने चेतावनी दी कि यदि इस पर रोक नहीं लगाई गई, तो इसका क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम (आपराधिक न्याय प्रक्रिया) पर गंभीर असर पड़ सकता है।
एनसीबी और डीआरआई के 47 मामलों में आरोपी फरार
कोर्ट के समक्ष पेश किए गए आंकड़े चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) द्वारा जांचे गए कम से कम 38 मामलों और डायरेक्टरेट ऑफ रेवेन्यू इंटेलिजेंस (DRI) के 9 मामलों में विदेशी नागरिक जमानत मिलने के बाद फरार हो गए। बाद में जांच करने पर पता चला कि उनकी जमानत के दस्तावेज और जमानतदार (Sureties) फर्जी थे। फरार होने वाले इन आरोपियों में मुख्य रूप से नाइजीरिया और नेपाल के नागरिक शामिल हैं।
क्या वेरिफिकेशन मॉड्यूल काम कर रहा है?
बेंच ने इस बात का असेसमेंट करने की आवश्यकता जताई कि क्या जमानत के सत्यापन के लिए बनाए गए मौजूदा टेक्नोलॉजिकल टूल्स प्रभावी हैं। कोर्ट ने विशेष रूप से नेशनल इंफॉर्मेटिक्स सेंटर (NIC) द्वारा विकसित किए गए ‘जमानत वेरिफिकेशन मॉड्यूल’ की कार्यक्षमता और पर्याप्तता पर सवाल उठाए हैं।
हेरोइन केस: जमानतदार का पता फर्जी, बैंक खाता भी नहीं मिला
यह पूरा मामला डीआरआई के एक केस से जुड़ा है, जिसमें 4.9 किलोग्राम हेरोइन जब्त की गई थी। इस मामले में आरोपी विदेशी नागरिक ‘चिडीबेरे किंग्सले नौचारा’ को मई में बॉम्बे हाई कोर्ट ने दो साल की कस्टडी के आधार पर जमानत दे दी थी। केंद्र सरकार ने जब इस आदेश को चुनौती दी, तो सुप्रीम कोर्ट ने जमानत पर रोक लगाते हुए महाराष्ट्र पुलिस को आरोपी को गिरफ्तार करने और लुकआउट सर्कुलर जारी करने का निर्देश दिया।
हैरानी की बात यह है कि अक्टूबर तक नौचारा गायब हो चुका था। पुलिस और फॉरेनर्स रीजनल रजिस्ट्रेशन ऑफिस की तमाम कोशिशों के बाद भी उसका पता नहीं चला।
जांच में हुआ बड़ा खुलासा
कोर्ट के आदेश पर जब अधिकारियों ने आरोपी के जमानतदार (Guarantor) की जांच की, तो डीआरआई के एफिडेविट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए:
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जमानतदार द्वारा दिया गया हर विवरण झूठा था।
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वह मुंबई के परेल स्थित जिस पते पर रहता था, वहां स्थानीय लोगों ने उसका नाम तक नहीं सुना था।
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जिस नियोक्ता (Employer) का विवरण दिया गया था, उन्होंने पुष्टि की कि ऐसा कोई व्यक्ति वहां काम नहीं करता।
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दस्तावेजों में दर्ज बैंक अकाउंट भी अस्तित्व में नहीं था।






